
प्रिय लेपालकपन पाये हुए लोगों,
हमारे पास क्या ही शानदार सर्दी का ऋतु हैं जब पवित्र आत्मा दुल्हन के लिए अपने वचन को प्रकाशित कर रहा है ऐसा पहले कभी भी प्रकाशित नहीं किया। हो सकता है हमने जिन चीज़ों को अपने पूरे जीवन में सुना होगा, पढ़ा होगा और अध्ययन किया होगा, वे चीजे अब बेपर्दा हो रही है, प्रकट हो रही है ऐसा इससे पहले कभी भी नहीं हुआ।
इसी दिन के लिए मनुष्य ने हज़ारों वर्षो से प्रतीक्षा की है। उन सभी ने उन चीज़ों को सुनने और देखने की लालसा की और प्रार्थना की, जिन्हें हम देखते और सुनते हैं। यहाँ तक कि पुराने समय के भविष्यव्यक्ता भी इस दिन की इच्छा रखते थे। वे किस तरह से पूर्णता में आने और प्रभु के आगमन को देखना चाहते थे।
यहाँ तक कि यीशु के चेले, पतरस, याकूब और यूहन्ना, वे लोग जो उसके साथ चलते थे और बात करते थे, वे भी वह सब देखने और सुनने की लालसा रखते थे, जो छिपा हुआ था। उन्होंने प्रार्थना की कि यह उनके दिन, उनके समय में प्रकट हो और प्रकटीकरण में आ जाये।
सात कलीसिया युगों में से होते हुए, प्रत्येक संदेशवाहक, पौलुस, मार्टिन और लूथर, वे सभी रहस्यों को जानना चाहते थे, जो छिपे हुए थे। उनकी इच्छा थी कि वचन की पूर्णता उनके जीवनकाल में हो। वे प्रभु के आगमन को देखना चाहते थे।
परमेश्वर के पास एक योजना थी। परमेश्वर के पास एक समय था। परमेश्वर के पास कुछ लोग थे जिनके लिए वो रुका हुआ हुआ था…हम। युगों से होते हुए, सारे विफल हो गये। लेकिन वो अपने पूर्वज्ञान के द्वारा जानता था, कुछ लोग होंगे: उसकी महिमामय, सिद्ध वचन दुल्हन। वे उसे विफल नहीं करेंगे। वे एक शब्द पर भी समझौता नहीं करेंगे। वे उसकी शुद्ध कुंवारी वचन दुल्हन होंगे।
अभी वो समय है। अभी वो ऋतु है। हम वे चुने हुए लोग हैं जिसके लिए वो तब से लेकर रुका हुआ है जब से आदम गिर गया और उसने अपना अधिकार खो दिया था। हम उसकी दुल्हन हैं।
परमेश्वर ने यूहन्ना को उन सभी चीज़ों को पहले से दिखाया जो चीजे जगह लेने जा रही थीं, लेकिन वो सभी अर्थों को नहीं जानता था। जब उसे बुलाया गया, तो उसने सिंहासन पर बैठे हुए, उसके दाहिने हाथ में एक किताब को देखा, जो भीतर से लिखी हुई थी, सात मोहरों से मोहरबंद की गई थी, लेकिन कोई भी किताब को खोलने के योग्य नहीं था।
यूहन्ना चिल्लाया और फूट-फूट कर रोया जब सब कुछ खो गया था, कोई आशा नहीं थी। लेकिन प्रभु की स्तुति हो, प्राचीनो में से एक ने उससे कहा, “मत रो, क्योंकि देखो, यहूदा के गोत्र का सिंह, दाऊद का वंश, किताब को खोलने और उसकी सात मोहरें को खोलने के लिए जयवंत हुआ है”।
यही वो समय था। यही वो ऋतु थी। यही वह मनुष्य था जिसे परमेश्वर ने वो सब लिखने के लिए चुना था जो उसने देखा था। लेकिन फिर भी, इसका कोई भी अर्थ पता नही था।
परमेश्वर अपने चुने हुए पात्र के लिए रुका रहा और रुका रहा, अपने सातवें सन्देशवाहक दूत के धरती पर आने के लिए, ताकि वह उसकी आवाज़ का उपयोग, अपनी दुल्हन के लिए, अपनी आवाज़ के रूप में कर सके। वह होंठो से कान तक सीधे बात करना चाहता था जिससे कि कोई गलतफहमी न हो। वह खुद, अपनी प्रिय, पहले से ठहराई गयी, सिद्ध, ह्रदयप्रिय दुल्हन से बोलना चाहता था और अपने सभी रहस्यों को प्रकट करना चाहता था…हम!!
वह हमें ये सारी अद्भुत बातें बताने के लिए कितना उत्सुक था। जैसे एक पुरुष अपनी पत्नी से बार-बार और बार-बार कहता है कि वह उससे प्रेम करता है और वह उसे सुनते-सुनते कभी थकती नहीं, वैसे ही उसे बार-बार और बार-बार यह कहना पसंद है कि वह हमसे प्रेम करता है, उसने हमें चुना, हमारे लिए रुका रहा और अब वह हमारे लिए आ रहा है।
वह जानता था कि हम उसे बार-बार और बार-बार कहते हुए सुनना कितना पसंद करेंगे, इसलिए उसने अपनी आवाज़ को रिकॉर्ड करवाया, जिससे कि उसकी दुल्हन पूरा दिन, हर दिन ‘बटन को दबाकर चलाये’ और उसके वचन को उनके ह्रदय को भरते हुए सुने।
उसकी प्रिय दुल्हन ने उसके वचन पर भोज करने के द्वारा खुद को तैयार कर लिया है। हम और कुछ नहीं सुनना चाहेंगे, केवल उसकी आवाज़ को। हम केवल उसके प्रदान किये गए शुद्ध वचन को ही ग्रहण कर सकते हैं।
हम बहुत ही अपेक्षा के अंदर हैं। हम अपने प्राण के भीतर उसे महसूस करते हैं। वह आ रहा है। हम विवाह के संगीत को बजता हुआ सुनते हैं। दुल्हन बीच गलियारे में चलने के लिए लगभग तैयार है। सभी खड़े हो जाते है, दुल्हन अपने दूल्हे के साथ आने वाली है। सब कुछ तैयार हो चुका है। वह घड़ी आ पहुंची है।
वह हमसे उस तरह प्रेम करता हैं जितना कोई और नहीं करता। हम उससे उस तरह प्रेम करते हैं जितना किसी और से नहीं। हम पूरे अनंतता के लिए उसके साथ एक होने जा रहे है और वे सभी लोग जिनसे हम प्रेम करते है।
रविवार को दोपहर 12:00 बजे जेफरसनविले समय पर हमारे साथ विवाह के लिए खुद को तैयार करने के लिए आपको आमंत्रित किया जाता है, जब हम परमेश्वर की आवाज़ को प्रकट करते हुए सुनेंगे प्रकाशितवाक्य, अध्याय पाँच भाग एक 61-0611 ।
भाई जोसफ ब्रंहम